About arpan
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Good morning everyone.
My name is Arpan, and I am a student of class 8 at K. L. Convent School. I feel proud to be a part of this institution where I get many opportunities to learn and grow.In my family, there are four members. My father’s name is Pankaj, and he is a hardworking person who always motivates me to do well in life. My mother’s name is Anju, and she is very caring and supportive. Both of them always encourage me in my studies and hobbies.
Speaking about myself, I am a sincere, disciplined, and curious learner. I like to participate in school activities and always try to give my best. My favorite hobby is writing poetry. Through poetry, I can express my emotions and thoughts in a creative way. It also helps me to relax and understand the beauty of words.My aim in life is to become a successful person who can make my parents and teachers proud. I believe in hard work, honesty, and dedication. I always try to learn something new every day and improve myself.
Thank you.
वीर की स्तुति
के एल की इस धरती में जो मैं कविता पढ़ता हूं
किसी को बुरा लगे अच्छा मैं उसका भी आदर करता हूं
मैं आदर करता हूं वीरों का जिनकी सांसे टूट गई।
आदर करता हूं वीरों का जिनके बेटे रूठ गए
आदर तब भी था आधार का अभी मैं ज्ञान किया
जिन माओ के बेटे रूठे उनका भी सम्मान किया
सामानों के योग्य नहीं जो कुर्सी लेकर बैठे हैं
हिंदू मुस्लिम करते हैं और खुद को नेता कहते है
मुझे मिले कई धर्म मगर मैंने एक धर्म अपनाया है
जो राष्ट्र प्रेमी राष्ट्र के खातिर राष्ट्र धर्म कहलाया है
हिंदू मुस्लिम करता हूं तो कुछ लोग मुझसे जलते है
चलो इस मुद्दों को छोड़ो अगले मुद्दे पर चलते हैं
की कितने मुद्दे ऐसे छोड़े मेरी यही जुबानी ह
कि वीर के बदले वीर काटेंगे इसकी यही कहानी है
कि वीरों की ही बात हुई तो आगे कुछ भी सुनते जाओ अपने मुख से अपने दिल से आगे कौन भी कहते जाओ
कि तुम जो रोज याद करते हो साउथ वाले हीरो को
लगता है तुम भूल गए फैंसी वाली वीरों को
तुम याद करो उन वीरों को सम्मान वतन अपनाया था
किसी इसके बदले चीज काटे थे भारत का शीश बचाया था तू कैसे भोले पुलवामा का आगराभोज अविनाशी युद्ध
वीर के बदले वीर जले थे कोई नहीं बचाया था
कि सरकार है तो मौन युद्ध में बैठी बैठी उलट गई
करके वादा देख इच्छा जाने कैसे भी पलट गई
की वीरों की ही बात हुई तो आगे कुछ भी सुनते जाओ
अपने मुख से अपने दिल से तुम भी आगे कहते जोओ
कि कई मां के बेटे भी इस दरिया में उतरे हैं
वह दरिया लेकर अपनी जान से ज्यादा गुजरे हैं
कि उनकी जान की कीमत क्या हम और आप समझेंग
उनके मन के आंसू देखकर जज्बात समझेंगे
यहां तो फौजी मरते हैं कोई इसका जज्बात नहीं
कितने बेटे शहीद हुआ इसका कोई अंदाज नहीं
इसलिए कहते हैं ना तिरंगा झुकेगा शान से लहराता है वीरों की जान से मगर तुम वीरों की जान का क्या करोगे
जो मर गए वतन की शान पर
याद करो अंग्रेजी में जब लड़ना अपनाया था
तब राष्ट्र बचाने भारत ही राष्ट्र प्रेम कहलाया था
कि देश का नारा जब मैं इनकार किया
मैंने अपने भारत का नारा ही सर्वप्रथम स्वीकार किया अब सब कुछ भूल कर एक होकर जीवन को अपनाना है
सत्य हिंसा भाव प्रेम से झंडा को लहराना है
मैं अपने देश के इतिहास पर अभिमान करता हूं
यही यही वाणी को रोकेगा यही विराम करता हूं
-ARPAN DWIVEDI
2.राम को तो देख लिया राम नाम का लिया राम के बिना कोई जी नहीं पाएगा
राम नाम लेकर राम कोई दे दिया है राम के सिवा कोई जिंदगी में आएगा
राम के शिवा जो मेरी जिंदगी में आएगा तो राम नाम वापस ही चला जाएगा
राम नाम पूछते हो राम कोई देखे हो मेरे राम की जगह कोई ले ना पायेगा
दिल के दरबारी में सुगंध लगी पड़ी की राम के जैसा कोई भगवान नहीं आएगा
राम कोई ले लिया है राम नाम ले लिया है राम के जैसा कोई भगवान ना कहलाएगा
कहते हैं कौशल्या में राम की महतारी की राम के जैसा कोई पुत्र ना हो पाएगा
कहती है जनक दुलारी राम की अर्धांगिनी राम के जैसा ना कोई वर मिल पाएगा
कि जिंदगी भर जो राम-राम का नाम लिया वह राम के भजन का पुण्य नहीं पायेगा
जो जाकर आसमान में खूब पछताएगा जो राम के बिना कुछ कर नहीं पाएगा
राम के बिना कोई गाना ही पाएगा राम के सिवा कहीं और कहीं जा नहीं पाएगा
की राम को ही पूछते हो राम नाम मानते हो राम के बिना कोई जी नहीं पाएगा
राम के भजन का तुम खान और पी करो राम की तरह कोई बन नहीं पाएगा
आएंगे कई राजा और चले जाएंगे राम की तरह कोई नाम ना काम आएंगे
कि आन से जो करते मेरे राम की गणना मेरे राम की गणना को आन ना कर पाएंगे
-ARPAN DWIVEDI
3.नजर अक्सर शिकायत आजकल करती है अर्पण से थकान भी छूट गया लेने लगी है तन से और मन से
कहां तक हम संभाले उम्र का हर रोज गिरता घर
तुम अपनी याद का मलबा हटाओ दिल के आंगन से
4.असेंबली के धारा को में सदा स्वीकार करता हूं
गुरुओं के नसीहत को दिल के पार करता हु
भले ही मान ज़ायू मैं बुरा बातो को मैं उनकी
मैं उनकी भावनाओं का मगर सम्मान करता हूं
5. की गुरुओं का जो हमको प्यार हर एक बार मिलता है
मैं चलता हूं इशारों पर हमें उपकार मिलता है।
कि मैं देख ली दुनिया यहां इंसान रहते हैं
मगर गुरुओं के चरणों में हमें भगवान मिलता है
6. क्रिकेट में कोई दिन नहीं ना कोई शाम भी होगा
सितारों की कहानी पर कोई ना ताज भी होगा
अगर कोई ताज भी होगा तो तेरे नाम ही होगा
मगर दुनिया में अब रोहित के नाम का बल्लेबाज ना होगा
7. तुझे ही लेकर बैठा हूं तुझे ही लेकर जाऊंगा
तेरी यादों का बक्सर में समुंदर छोड़ जाऊंगा
जहां कोई भी आए जो आए जान से जाए
जहां हम एक हो कर रह सके वह देश जाऊंगा
8. की तूफानों की कश्ती में हवाओं का किनारा है
जो दिल को एक कर देता है वह दिल भी तो हमारा है
ना तेरे आस लेकर जी रहे ना आस लेकर मार सके
हमें ना छोड़ कर जो तुम्हारा ही सहारा है
9. दिन को रात समझोगे और दिन को भूल जाओगे
यह होगा इस कदर कि तुम खुद को भूल जाओगे
मगर तुम याद यह रखना मुझे एक बात ही कहना
क्या अपनी याद के दरिया से हमको भूल जाओगे
10. ना सही से मर रहा हूं मैं ना सही से जी रहा हूं
मैं कहीं भी दूर जाता हूं कहीं ना को रहा हूं।
मैं तुम्हें जो लगता है तेरी याद का बात ना सुनता तूमरी बात सुन सुनकर के सही से जी रहा हूं मै
11.कहीं हम देर से जाएं तो रुसवा टूट जाते हैं
कोई गाना को भी गए तो ढूंढ भी छूट जाते हैं
जमाने के सफर में क्यों जमाने छूट जाते हैं
तुझे देखा तो जाना है कि क्यों दिल ये टूट जाते हैं
12. आनाथो की बस्ती आनाठो का समुंदर है
समुद्र दूर कैसा है नदिया भी तो मंजर है
कि मंजर में कभी तुमको भी आना भी जरूरी है
तुम्हारे आंख का क्या कहना तुम्हमें दिल पर खंजर है
13. कभी मैं जाता था मैं कभी मैं दिन भी गिनता था
तुम्हारी याद के आंसू सनम मैं पल भी गिनता था
जो गिनता था वह दुनिया थी जो ना गिनता था वह मंजर था तुम्हारी याद के दरिया से गिरना भी मैं गिनता थ
12. तुम्हारी जो कहानी थी कहानी गजब की थी
बहाना ढूंढती थी तुम बहाना भी खत्म ही है
तुम्हारी आंखें आंगन मैं हमारी प्यास अजब सी है
तुम्हारे दिन के जाने से हमारा दिन गजब ही है
13. धड़कन की जुबान है कुछ ना दिल में भी जगह है कुछ सूरज तुम्हारे याद के आंसु में मंजिल भी नहीं है कुछ
हमारी एक मंजिल थी जिसे हमको ना पाना है
बताओ प्यार के प्रीतम मोहब्बत छोड़ जाए कुछ
14. कभी भी देख कर देखूं दुनिया अच्छी होती है
तुम्हारे प्यार को ले लूं तो धोखा नहीं की होती है
मगर उस धोखे का क्या करना जो होगा बाद में होगा
मगर यह बात की दुनिया क्या कहीं पर फेंकी होती है
15. गुना क्या कर दिया मैंने जो मेरा नाम करता है
हमारे नाम के बदले तुम्हें स्वीकार करता है
तुम्हारा ठीक है लेकिन हमें इंकार करता है
जिसको भी सगा समझो दिल के पार करता है
16. कई आंखों के मंजर भी तो इस दरिया में बैठे हैं
वह हमसे आश ले बैठे कि हम कविता भी करते हैं
कि हम कविता जो लिखते हैं उसे लेखन हीं कहते हैं
जो हमको सुन रहे हैं हम उन्हें सम्मान करते हैं
17. कभी मैं दिल को ढूंढो तो ऊसी पल शाम हो जाए किसी को देख लो तो वह वही बेकार हो जाए
जो तुम्हारे दिल के चाहे तू उसी से प्यार हो जाए
भले तुम्हारे दिल के दरिया से मैं इनकार हो जाए
18. हमारे दिल की बस्ती में तुम्हारे ख्वाब है सस्ते
तुम्हारा दिल तो क्या बसता हमारे ताज ना बसते
जवा दिल हो नहीं सकता जहां तेरी याद ना बसते
जो कभी आंखों की धड़कन में तुम्हारे ख्वाब में बसते
19. जरूरी है क्या हर मंदिर में पैसे ही लगते
कि हर कपड़े के टुकड़े मां के आंचल हो नहीं सकते
यहां हर जगह हर बस्ती में है लोग हैं रहते
कोई यहां दिन नहीं है क्या जहां हम सो नहीं सकते
20. जो पड़ता है शायर को शायर ही तो होता है
जो डरता है किताबों से वह कायर ही तो होता है
जो बातें दिल के अंदर दिल दबी में दिल में होता है
वही एक बात कुछ देर में अखबार होता है
21. वह हमको देखे तो है मगर कुछ कह नहीं पाते
हमारे बारे में सुनते तो कुछ भी सह नहीं पाते
अगर वह देखते हैं कि हमारी याद आती है
मगर वह याद के बदले में कुछ भी कह नहीं पाते
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊंगा
सास साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊंगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बांसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बांसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम अलग हुई मुझसे सांस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आंख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बांसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
जवानी में कई ग़ज़लें अधूरी छूट जाती हैं
कई ख़्वाहिश तो दिल ही दिल में पूरी छूट जाती हैं
जुदाई में तो मैं उससे बराबर बात करता हूं
मुलाक़ातों में सब बातें अधूरी छूट जाती हैं
जो मैं या तुम समझ लें वो इशारा कर लिया मैंने
भरोसा बस तुम्हारा था तुम्हारा कर लिया मैंने
लहर है हौसला है रब है हिम्मत है दुआएं हैं
किनारा कर ने वालों से किनारा कर लिया मैंने
मैं अपने गीत ग़ज़लों से उसे पैग़ाम करता हूं
उसी की दी हुई दौलत उसी के नाम करता हूं
हवा का काम है चलना दीये का काम है जलना
वो अपना काम करती है मैं अपना काम करती हूं
किसी के दिल की मायूसी जहां से होके गुज़री है
हमारी सारी चालाकी वहीं पर खोके गुज़री है
तुम्हारी और मेरी रात में बस फ़र्क़ इतना है
तुम्हारी सोके गुज़री है हमारी रोके गुज़री है
पुकारे आंख में चढ़कर तो ख़ूं तो ख़ूं समझता है
अंधेरा किसको कहते हैं ये बस जुगनू समझता है
हमें को चांद तारों में भी तेरा रूप दिखता है
मोहब्बत को नुमाइश को अदाएं तू समझता है
.मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबिरा दिवाना था कभी मीरा दिवानी है
यहां सब लोग कहते हैं मेरी आंखों में आंसू हैं
जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है
.समंदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आंसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
मेरी चाहत को अपना तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा नहीं हो सकता
इस अधूरी जवानी का क्या फ़ायदा
बिन कथानक कहानी का क्या फ़ायदा
जिसमें धुलकर नज़र भी न पावन बनी
आंख में ऐसे पानी का क्या फ़ायदा
.वक़्त के क्रूर छल का भरोसा नहीं
आज जी लो कल का भरोसा नहीं
दे रहे हैं वो अगले जनम की ख़बर
जिनको अगले ही पल का भरोसा नहीं
ऋषि कश्यप की तपस्या ने तपाया है तुझे
ऋषि अगस्त्य ने हमभार बनाया है तुझे
कवि ललदत् ने राबिया ने भी गाया है तुझे
बाबा बर्फ़ानी ने दरबार बनाया है तुझे
तेरी झीलों की मोहब्बत में है पागल बादल
मां के माथे पे दमकते हुए पावन आंचल
तेरी सरगोशी पे कुर्बान मेरा पूरा वतन
मेरे कश्मीर मेरी जान मेरे प्यारे चमन
.तेरे गुलमर्ग पे सरताज ताज हार गया
तू वो जन्नत कि जहांगीर भी दिल हार गया
तुझसे मिलने जो गया वो तेरा होकर लौटा
काबुली वाला तेरी गलियों से होकर लौटा
सूफ़ियों ने तुझे पैग़ाम-ए-हक़ सुनाया था
शंकराचार्य ने मंदिर वहीं बनाया था
आ गिले शिकवे करें दोनों मिलके आज दफ़न
मेरे कश्मीर मेरी जान मेरे प्यारे चमन
तेरे बेटों के संस्कृत के व्याकरण की क़सम
ख़ूबानी सेब जैसे मीठे आचरण की क़सम
तेरी क़ुरबानी में डूबी हुई सदियों की क़सम
तेरे पर्वत से उतरती हुई नदियों की क़सम
.गुल के गुलफाम के गुलशन के चिनारों की क़सम
तेरी डल झील के उन सारे शिकारों की क़सम
तुझको सीने से लगाने के हैं ये सारे जतन
मेरे कश्मीर मेरी जान मेरे प्यारे चमन
दिल के तमाम ज़ख़्म तिरी हाँ से भर गए
जितने कठिन थे रास्ते वो सब गुज़र गए
मिरा ख़याल तिरी चुप्पियों को आता है
तिरा ख़याल मिरी हिचकियों को आता है
जिस्म चादर सा बिछ गया होगा
रूह सिलवट हटा रही होगी
बात करनी है बात कौन करे
दर्द से दो दो हाथ कौन करे
हम सितारे तुम्हें बुलाते हैं
चाँद न हो तो रात कौन करे
तुम्हें जीने में आसानी बहुत है
तुम्हारे ख़ून में पानी बहुत है
हो के क़दमों पे निछावर फूल ने बुत से कहा
ख़ाक में मिल कर भी मैं ख़ुशबू बचा ले जाऊँगा
पगली सी एक लड़की से शहर ये ख़फ़ा है
वो चाहती है पलकों पे आसमान रखना
केवल फ़क़ीरों को है ये कामयाबी हासिल
मस्ती से जीना और ख़ुश सारा जहान रखना
. ना पाने की खुशी है कुछ, ना खोने का ही कुछ गम है
ये दौलत और शोहरत सिर्फ, कुछ ज़ख्मों का मरहम है
अजब सी कशमकश है,रोज़ जीने, रोज़ मरने में
मुक्कमल ज़िन्दगी तो है, मगर पूरी से कुछ कम है|
वो जो खुद में से कम निकलतें हैं
उनके ज़हनों में बम निकलतें हैं
आप में कौन-कौन रहता है
हम में तो सिर्फ हम निकलते हैं।
.भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा,
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा,
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का,
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा।
.घर से निकला हूँ तो निकला है घर भी साथ मेरे
देखना ये है कि मंज़िल पे कौन पहुँचेगा
मेरी कश्ती में भँवर बाँध के दुनिया ख़ुश है
दुनिया देखेगी कि साहिल पे कौन पहुँचेगा।
.मोहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते है, मेरी आँखों में पानी है
जो तुम समझो तो मोती है, जो ना समझो तो पानी है.
पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार क्या करना
जो दिल हारा हुआ हो उस पे फिर अधिकार क्या करना
मुहब्बत का मजा तो डूबने की कशमकश में है
हो ग़र मालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना।
सब अपने दिल के राजा है, सबकी कोई रानी है
भले प्रकाशित हो न हो पर सबकी कोई कहानी है
बहुत सरल है किसने कितना दर्द सहा
जिसकी जितनी आँख हँसे है, उतनी पीर पुराणी है.
स्वंय से दूर हो तुम भी स्वंय से दूर है हम भी
बहुत मशहूर हो तुम भी बहुत मशहूर है हम भी
बड़े मगरूर हो तुम भी बड़े मगरूर है हम भी
अतः मजबूर हो तुम भी अतः मजबूर है हम भी.
कोई मंजिल नहीं जंचती, सफर अच्छा नहीं लगता
अगर घर लौट भी आऊ तो घर अच्छा नहीं लगता
करूं कुछ भी मैं अब दुनिया को सब अच्छा ही लगता है
मुझे कुछ भी तुम्हारे बिन मगर अच्छा नहीं लगता।
वो जिसका तीरे छुपके से जिगर के पार होता है
वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से
यहां खत भी जरा सी देर में अखबार होता है।
हमने दुःख के महासिंधु से सुख का मोती बीना है
और उदासी के पंजों से हँसने का सुख छीना है
मान और सम्मान हमें ये याद दिलाते है पल पल
भीतर भीतर मरना है पर बाहर बाहर जीना है।
. हमने दुःख के महासिंधु से सुख का मोती बीना है
और उदासी के पंजों से हँसने का सुख छीना है
मान और सम्मान हमें ये याद दिलाते है पल पल
भीतर भीतर मरना है पर बाहर बाहर जीना है।
क़लम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा,
गिरेबां अपना आँसू में भिगोता हूँ तो हंगामा.
नहीं मुझ पर भी जो खुद की ख़बर वो है ज़माने पर,
मैं हँसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा
हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते
मगर रस्मे-वफ़ा ये है कि ये भी कह नहीं सकते
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों कि चीख सुन भर लो
जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते
उन की ख़ैर-ओ-ख़बर नहीं मिलती
हम को ही ख़ास कर नहीं मिलती
शाएरी को नज़र नहीं मिलती
मुझ को तू ही अगर नहीं मिलती
रूह में दिल में जिस्म में दुनिया ढूँढता हूँ
मगर नहीं मिलती
लोग कहते हैं रूह बिकती है
मैं जिधर हूँ उधर नहीं मिलती||
मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हे बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छू गया था तब के अब तक गा रहा हु मैं
बिछुड़ के तुम से अब कैसे जिया जाए बिना तड़पे
जो में खुद हे नहीं समझा वही समझा रहा हु मैं..
वो जिसका तीरे छुपके से जिगर के पार होता है
वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से
यहां खत भी जरा सी देर में अखबार होता है।
तुझ को गुरुर ए हुस्न है मुझ को सुरूर ए फ़न
दोनों को खुदपसंदगी की लत बुरी भी है
तुझ में छुपा के खुद को मैं रख दूँ मग़र मुझे
कुछ रख के भूल जाने की आदत बुरी भी है
“तुम्हीं पे मरता है ये दिल, अदावत क्यों नहीं करता,
कई जन्मों से बंदी है, बग़ावत क्यों नहीं करता,
कभी तुम से थी जो वो ही शिकायत है ज़माने से,
मेरी तारीफ़ करता है, मुहब्बत क्यों नहीं करता..!
नज़र में शोखिया लब पर मुहब्बत का तराना है
मेरी उम्मीद की जद़ में अभी सारा जमाना है
कई जीते है दिल के देश पर मालूम है मुझकों
सिकन्दर हूं मुझे इक रोज खाली हाथ जाना है।
समंदर पीर का अन्दर है,लेकिन रो नहीं सकता
यह आंसू प्यार का मोती है,इसको खो नहीं सकता
. मेरी चाहत को दुल्हन तू,बना लेना मगर सुन ले.
जो मेरा हो नहीं पाया,वो तेरा हो नहीं सकता
मेरा जो भी तर्जुबा है, तुम्हे बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छु गया था तब, की अब तक गा रहा हूँ मैं
बिछुड़ के तुम से अब कैसे, जिया जाये बिना तडपे
जो मैं खुद ही नहीं समझा, वही समझा रहा हु मैं
सखियों संग रंगने की धमकी सुनकर क्या डर जाऊँगा?
तेरी गली में क्या होगा ये मालूम है पर आऊँगा,
भींग रही है काया सारी खजुराहो की मूरत सी,
इस दर्शन का और प्रदर्शन मत करना, मर जाऊँगा
एक पहाडे सा मेरी उँगलियों पे ठहरा है
तेरी चुप्पी का सबब क्या है? इसे हल कर दे
ये फ़क़त लफ्ज़ हैं तो रोक दे रस्ता इन का
और अगर सच है तो फिर बात मुकम्मल कर दे
यह चादर सुख की मोल क्यू, सदा छोटी बनाता है.
सीरा कोई भी थामो, दूसरा खुद छुट जाता है.
तुम्हारे साथ था तो मैं, जमाने भर में रुसवा था.
मगर अब तुम नहीं हो तो, ज़माना साथ गाता है।
मोहब्बत एक अहसासों की, पावन सी कहानी है,
कभी कबिरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है,
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं,
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है।
तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता,
कई जन्मों से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता,
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत है ज़माने से,
मेरी तारीफ़ करता है मोहब्बत क्यों नहीं करता।
उसी की तरह मुझे सारा ज़माना चाहे,
वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे,
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा,
ये मुसाफिर हो कोई ठिकाना चाहे।
घर से निकला हूँ तो निकला है,
घर भी साथ मेरे देखना ये है कि,
मंज़िल पे कौन पहुँचेगा ?
मेरी कश्ती में भँवर बाँध के दुनिया ख़ुश है
दुनिया देखेगी कि साहिल पे कौन पहुँचेगा.
मैं उसका हूँ वो इस एहसास से इनकार करती है
भरी महफ़िल में भी, रुसवा हर बार करती है
यकीं है सारी दुनिया को, खफा है हमसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है.
घर से निकला हूँ तो निकला है घर भी साथ मेरे,
देखना ये है कि मंजिल पे कौन पहुँचेगा,
मेरी कश्ती में भँवर बाँध के दुनिया ख़ुश है
दुनिया देखेगी कि साहिल पे कौन पहुँचेगा।
हमारे शेर सुनकर भी जो खामोश इतना है
खुदा जाने गुरुर ए हुस्न में मदहोश कितना है
किसी प्याले से पूछा है सुराही ने सबब मय का
जो खुद बेहोश हो वो क्या बताये होश कितना है.
उसी की तरह मुझे सारा जमाना चाहे,
वह मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे।
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा,
यह मुसाफिर तो कोई ठिकाना चाहे।
कोई पत्थर की मूरत है, किसी पत्थर में मूरत है
लो हमने देख ली दुनिया, जो इतनी खुबसूरत है
जमाना अपनी समझे पर, मुझे अपनी खबर यह है
तुझे मेरी जरुरत है, मुझे तेरी जरुरत है.
हर इक खोने में हर इक पाने में
तेरी याद आती है नमक आँखों में घुल जाने में
तेरी याद आती है. तेरी अमृत भरी लहरों को
क्या मालूम गंगा माँ समंदर पार वीराने में तेरी याद आती है.
पनाहों में जो आया हो, उस पर वार क्या करना
जो दिल हारा हुआ हो, उस पे फिर से अधिकार क्या करना
मोहब्बत का मज़ा तो, डूबने की कशमकश में है
जो हो मालूम गहरायी, तो दरिया पार क्या करना
बदलने को तो इन आखों के मंजर काम नहीं बदले,
तुम्हारी याद के मौसम हमारे ग़म नहीं बदले,
तुम अगले जन्म में हम से मिलोगी तब तो मानोगी,
ज़माने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले।
उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे,
वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे,
मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा,
ये मुसाफिर तो कोई ठिकाना चाहे।
जो किए ही नहीं कभी मैंने,
वो भी वादे निभा रहा हूँ मैं,
मुझसे फिर बात कर रही है वो,
फिर से बातों में आ रहा हूँ मैं !
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ।
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ।
तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है, नहीं लेकिन।
तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है, समझता हूँ।
तुझ को गुरुर ए हुस्न है मुझ को सुरूर ए फ़न.
दोनों को खुद पसंदगी की लत बुरी भी है.
तुझ में छुपा के खुद को मैं रख दूँ मग़र मुझे.
कुछ रख के भूल जाने की आदत बुरी भी है.
वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है
वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से
यहाँ ख़त भी थोड़ी देर में अखबार होता है.
उम्मीदों का फटा पैरहन,
रोज़-रोज़ सिलना पड़ता है,
तुम से मिलने की कोशिश में,
किस-किस से मिलना पड़ता है।
क़लम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हंगामा,
गिरेबां अपना आँसू में भिगोता हूँ तो हंगामा।
नहीं मुझ पर भी जो खुद की ख़बर वो है ज़माने पर,
मैं हँसता हूँ तो हंगामा, मैं रोता हूँ तो हंगामा।
मेरा अपना तजुर्बा है तुम्हें बतला रहा हूँ मैं
कोई लब छू गया था तब के अब तक गा रहा हूँ मैं
बिछुड़ के तुम से अब कैसे जिया जाए बिना तड़पे
जो में खुद हूँ नहीं समझा वही समझा रहा हूँ मैं..
स्वंय से दूर हो तुम भी, स्वंय से दूर है हम भी
बहुत प्रसिद्ध हो तुम भी, बहुत प्रसिद्ध हो हम भी
बड़े मगरूर हो तुम भी, बड़े मगरूर हो हम भी
अतः मजबूर हो तुम भी, अतः अनुपालन है हम भी।
घर से निकला हूँ तो निकला है घर भी साथ मेरे
देखना ये है कि मंज़िल पे कौन पहुँचेगा ?
मेरी कश्ती में भँवर बाँध के दुनिया ख़ुश है
दुनिया देखेगी कि साहिल पे कौन पहुँचेगा।
यह चादर सुख की मोल क्यू,
सदा छोटी बनाता है. सीरा कोई भी थामो,
दूसरा खुद छुट जाता है. तुम्हारे साथ था तो मैं,
जमाने भर में रुसवा था.
मगर अब तुम नहीं हो तो, ज़माना साथ गाता है.
कोई खामोश है इतना, बहाने भूल आया हूँ
किसी की इक तरनुम में, तराने भूल आया हूँ
मेरी अब राह मत तकना कभी ए आसमां वालो
मैं इक चिड़िया की आँखों में, उड़ाने भूल आया हूँ
नज़र में शोखिया लब पर मुहब्बत का तराना है,
मेरी उम्मीद की जद में अभी सारा जमाना है,
कई जीत है दिल के देश पर मालूम है मुझकों,
सिकन्दर हूँ मुझे इक रोज़ खाली हाथ जाना है।
पनाहों में जो आया हो तो उस पर वार क्या करना
जो दिल हारा हुआ वोहा पे फिर अधिकार क्या करना
मुहब्बत का मजा तो डूबने की कशमकश में है
ग़ैर मालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना।
मोहब्बत एक अहसासों की, पावन सी कहानी है,
कभी कबिरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है,
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं,
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है।
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ
तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नही लेकिन
तुम्हीं को भूलना सबसे ज़रूरी है, समझता हूँ।
तुझ को गुरुर ए हुस्न है
मुझ को सुरूर ए फ़न।
दोनों को खुद पसंदगी की
लत बुरी भी है।
तुझ में छुपा के खुद को
मैं रख दूँ मग़र मुझे।
कुछ रख के भूल जाने की
आदत बुरी भी है।
गिरेबां चाक करना क्या है,
सीना और मुश्किल है.
हर एक पल मुस्कुरा के,
अश्क पीना और मुश्किल है.
हमारी बदनसीबी ने,
हमें इतना सीखाया है.
किसी के इश्क में मरने से,
जीना और मुश्किल है.
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हंगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मोहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हंगामा
वो जिसका तीर चुपके से जिगर के पार होता है
वो कोई गैर क्या अपना ही रिश्तेदार होता है
किसी से अपने दिल की बात तू कहना ना भूले से
यहाँ ख़त भी थोड़ी देर में अखबार होता है|
तुम्हीं पे मरता है ये दिल अदावत क्यों नहीं करता,
कई जन्मों से बंदी है बगावत क्यों नहीं करता,
कभी तुमसे थी जो वो ही शिकायत है ज़माने से,
मेरी तारीफ़ करता है मोहब्बत क्यों नहीं करता।
एक पहाडे सा मेरी उँगलियों पे ठहरा है
तेरी चुप्पी का सबब क्या है? इसे हल कर दे
ये फ़क़त लफ्ज़ हैं तो रोक दे रस्ता इन का
और अगर सच है तो फिर बात मुकम्मल कर दे|
तुम्हारा ख़्वाब जैसे ग़म को अपनाने से डरता है
हमारी आखँ का आँसूं , ख़ुशी पाने से डरता है
अज़ब है लज़्ज़ते ग़म भी, जो मेरा दिल अभी कल तक़
तेरे जाने से डरता था वो अब आने से डरता है|
कोई कब तक महज सोचे,कोई कब तक महज गाए
ईलाही क्या ये मुमकिन है कि कुछ ऐसा भी हो जाऐ
मेरा मेहताब उसकी रात के आगोश मे पिघले
मैँ उसकी नीँद मेँ जागूँ वो मुझमे घुल के सो जाऐ|
बतायें क्या हमें किन-किन सहारों ने सताया है
नदी तो कुछ नहीं बोली, किनारों ने सताया है
सदा ही शूल मेरी राह से ख़ुद हट गए लेकिन
मुझे तो हर घडी हर पल बहारों ने सताया है|
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Good
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